एक अनोखा पल जो यादगार है सोचा था कुछ, हुआ तो कुछ और है
इस अनोखे पल को न खो बैठू जिसने मुझे जीना सिखाया है
अब इसके सिवाय मैं किस पर भरोसा करूँ?
अनगिनत दिन जो लोग कहते है, आखिर सिर्फ चौबीस घंटे ही तो है
इन चौबीस घंटों में न जाने कितने नए ख्वाब आ जाते है
उन सबकी याद तो हरपाल रखना चाहता हूँ लेकिन ये जो पल है
छीन सकता है मुझसे ये यादगार पल
कितनी मोड़े कितनी करवटे जो इस छोटी सी जिंदगी ने ली है
मुझे क्या पता सिर्फ मैं जी रहा हूँ अपनी जो कही जिंदगी
आपस में दिलचस्प एवं खुश खबरियां भी दे जाती है ये पल
आखिर उससे बढकर कौन है जो इस संसार के पहिये को धकेल रहा है?