Skip to main content

ज़िन्दगी बस रह जायेगी एक सुनी अनसुनी कहानी

उन हाथों को याद रखना जो ज़िन्दगी के हर कदम पर अपनी साया बिछायी हो
उन बातों का कदर करना जो पराया ही सही अपनापन का एहसास दिलायी हो
वक्त किस समय पर कैसी मोड ले यह किसको पता
साँसे कब तक चले इसका किसे क्या अन्दाज़ा
उन हाथों को याद रखना जो ज़िन्दगी के हर कदम पर अपनी साया बिछायी हो
उन बातों का कदर करना जो पराया ही सही अपनापन का एहसास दिलायी हो
कभी फ़ूलों की महक वाली प्रकृति भी न जाने तूफ़ान का ज़ोखिम उठा लेती है
कभी हँसता चेहरा पर उदासी और मायूसी आँसू से दस्तख़त कर जाती है
उन हाथों को याद रखना जो ज़िन्दगी के हर कदम पर अपनी साया बिछायी हो
उन बातों का कदर करना जो पराया ही सही अपनापन का एहसास दिलायी हो
मेहमान हैं धरती पर चन्द दिनों के न फ़िर लौट आयेगी ये अलबेला जिन्द़गानी
सिर्फ़ होंठों पर शब्द व यादें दिमाग में रह कर दोहरायेगी अपनी अनोख़ी कहानी
उन हाथों को याद रखना जो ज़िन्दगी के हर कदम पर अपनी साया बिछायी हो
उन बातों का कदर करना जो पराया ही सही अपनापन का एहसास दिलायी हो

Popular posts from this blog

Telugu Year Names

(1867,1927,1987) Prabhava ప్రభవ (1868,1928,1988) Vibhava విభవ (1869,1929,1989) Sukla శుక్ల (1870,1930,1990) Pramodyuta ప్రమోద్యూత (1871,1931,1991) Prajothpatti ప్రజోత్పత్తి (1872,1932,1992) Aangeerasa ఆంగీరస (1873,1933,1993) Sreemukha శ్రీముఖ (1874,1934,1994) Bhāva భావ (1875,1935,1995) Yuva యువ (1876,1936,1996) Dhāta ధాత (1877,1937,1997) Īswara ఈశ్వర (1878,1938,1998) Bahudhānya బహుధాన్య (1879,1939,1999) Pramādhi ప్రమాధి (1880,1940,2000) Vikrama విక్రమ (1881,1941,2001) Vrisha వృష (1882,1942,2002) Chitrabhānu చిత్రభాను (1883,1943,2003) Svabhānu స్వభాను (1884,1944,2004) Tārana తారణ (1885,1945,2005) Pārthiva పార్థివ (1886,1946,2006) Vyaya వ్యయ (1887,1947,2007) Sarvajita సర్వజిత (1888,1948,2008) Sarvadhāri సర్వధారి (1889,1949,2009) Virodhi విరోధి (1890,1950,2010) Vikruti వికృతి (1891,1951,2011) Khara ఖర (1892,1952,2012) Nandana నందన (1893,1953,2013) Vijaya విజయ (1894,1954,2014) Jaya జయ (1895,1955,2015) Manmadha మన్మధ (1896,1956,2016) Durmukhi దుర్ముఖి (1897,19...

లోలోపల

 బయిటి వారితో కాదు. మనవారి తో మన సమక్షాన మంథనాలు. మంచిని పంచుకోగలం.. కాని.. కాలం చేసే గాయాలను అర్ధం చేసుకునే ఔనత్యం ఎవరికుంది ఈ రోజుల్లో.. లోలోపలే కుమిలిపోవటం తప్ప.. అది కనికట్టని తెలిసీ కూడా.. మనవారు ఎలా స్పందిస్తారో తెలియని నిర్వేదపు సూచన.