कभी खोये ख़्यालों में एक मासूम-सा चेहरा झलक उठता है। चमकीली आँखों के पलकों पर न जाने नफ़रत का नक़ाब कब से पता नहीं। गलतियाँ होती है आख़िर मनुष्यों से माफ़ अकसर बड़े दिलवाले की ही पहचान होती है। सप्ताह से घुस्से की आग में जल रही है, न जाने कितनी ही प्रदूषण हुआ होगा, बस एक मुस्कान की बारिश का गुज़ारिश, दो चार मीठी बातों का माहोल
మదిని సుతిమెత్తగా మీటే లావణ్య భావాల రత్నావళి