चाँद की चांदनी
पल के पलकों को टपकने से न जाने दिन रात में बदल जाती है छोटी सी मुस्कराहट न जाने कितने ग़मों को चकनाचूर कर देती है जीवन से बड़ा कौन है जीवन तो एक कोरा कागज़ है जीवन तो एक कोरा कागज़ है बस गीत गाता चल गीत गाता चल ओ राही मुसीबतें भी मिट जाएंगी उस चाँद की चांदनी में धुला संसार नया उमंग दिलाता है चाँद की रोश्नी में धब्बा भी दिखाई नहीं देता क्योंकि पूर्णिमा के चाँद में चहक भी सफ़ेद नज़र आता है