कुछ अपनों के लिए रख जा

हो तुम इस धरती पर मेहमान दिन दो दिन के
पर लगा लिए हो धागे बंधन के
इस जीवन में जो कुछ भी तुमने पाया है
जरूर किसी न किसी दिन दूसरे का हो जायेगा

पर ओ पथिक साथी दे तुम इतनी भला सबको की
कितनी भी दूर तुम हो लगे इन लोगों को की एक दिन
जरूर तुम वापस आओगे अपनों से मिलने
तब तक ऐ पथिक छोड़ जा तुम अपने राह पर फूलों के पथ

मुश्किलें सब लोग झेलते रहे है और झेलते रहेंगे
पर इन्ही मुश्किलों से सामना करने का वादा दे चल तुम
काश किसी दिन तेरी तो याद करेगी दुनिया
ओ राही कुछ अपनों के लिए सपने रख जा

इस सुनसान सागर की लहरों में डूबा हुआ है ये संसार
ज़रा इनको तैरना सिखा जा वक्त आए न आए याद रहेगी इन्हे
ओ राही जिस दुःख को तुमने झेला है उसे और फैलना न दे
ओ पथिक इस दुनिया के कुछ मासूम पलों की कद्र करता जा

कुछ अपने हुए कुछ पराये पर इस धरती पर कितने ही कुछ ऐसी चीजे है
जिनका मूल्य ही अनमोल रहा है ! ओ राही जब धरती को अपने पेड़ पौधों से नफरत नही तो
फ़िर इस मनुष्य नफरत की आग में जलना क्यों चाहता है
दिखाना है तो कुछ थोड़ा मुस्कराहट देते जाओ

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